हल्द्वानी के बनभूलपूरा में जमीन खाली कराए जाने को लेकर खूब बवाल हुआ और इसमें कुछ लोगों की मौत भी हो गई, ये नजूल की जमीनी थी जिसे सरकार की तरफ से खाली कराया जा रहा था। अब लोगों के मन में सवाल है कि आखिर नजूल की जमीन होती क्या है और ये कितने साल के लिए मिल सकती है, साथ ही इस पर अधिकारों को लेकर भी कई तरह के सवाल हैं।
क्या होती है नजूल की जमीन?
सबसे पहले जानते हैं कि नजूल की जमीन आखिर होती क्या है। नजूल की जमीन वो जमीन होती है, जिस पर किसी का दावा नहीं होता है, यानी ऐसी जमीन जिस पर दावा करने के लिए कोई भी दस्तावेज मौजूद नहीं हैं। इस जमीन पर सरकार का हक होता है। अंग्रेजों से भारत की आजादी के बाद ऐसी कई जमीनें सरकारों को मिली थीं। ये जमीन उन लोगों की थीं, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई थी।
ऐसा करने के लिए उनकी जमीनों पर कब्जा कर लिया जाता था और उन लोगों को सजा सुनाई जाती थी। ऐसी कुछ जमीनों पर तो दावे किए गए, लेकिन कुछ जमीनें ऐसी रह गईं जिन पर किसी ने भी दावा नहीं किया। ऐसी जमीनों को राज्य सरकारों को सौंप दिया गया। यानी जिस राज्य में वो जमीन थी, उसे राज्य सरकार के अधीन कर दिया गया। यानी नजूल की जमीन एक सरकारी जमीन होती है, जिस पर सिर्फ सरकार का हक होता है।
सरकार ने जारी किए पट्टे
नजूल की जमीन कई सालों तक खाली पड़ी रहीं, लेकिन बाद में सरकारों ने इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया। इसे कई जनहित कामों के लिए लीज पर दिया जाने लगा, ऐसी जमीनों पर स्कूल से लेकर हॉस्पिटल तक बनाए गए। वहीं कुछ ऐसे लोगों को भी जमीन दी गई, जिनके पास कृषि के लिए जमीन नहीं थी। नजूल हस्तांतरण नियमों के तहत ये जमीन ऐसे कामों के लिए दी जाती है। इसके जरिए जमीन के पट्टे दिए जाते हैं।
कितने साल के लिए दी जाती है जमीन?
सरकार नजूल की जिस जमीन के पट्टे जारी करती है उसकी एक निश्चित अवधि भी तय की जाती है, किसी को 10 साल तो किसी को 15 से 20 साल तक के लिए जमीन के पट्टे दिए जाते हैं। इस अवधि के बाद सरकार को जमीन वापस करनी होती है।
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों को 6 बीघा तक नजूल की जमीन मिल सकती है। इस जमीन पर बने किसी भी तरह की इमारत को नहीं खरीदा जा सकता है, ना ही कृषि योग्य भूमि को बेच सकते हैं। सरकार चाहे तो बीच में ही पट्टे या लीज को रद्द कर सकती है।
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