Sunday, December 10, 2023
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पत्नी से लंबे समय से अलग रहने के बाद दूसरी महिला के साथ रहना क्रूरता नहीं

पत्नी से लंबे समय से अलग रहने के बाद दूसरी महिला के साथ रहना क्रूरता नहीं जी, हां दिल्ली हाई कोर्ट ने पति को बरी कर दिया और इसे पत्नी के साथ क्रूरता नहीं माना, हालाँकि, अदालत ने मानवीय पहलू को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया।

दरअसल, आईपीसी और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 494 के तहत, किसी भी पुरुष या महिला के लिए अपने पति या पत्नी के जीवनकाल के दौरान दूसरी बार शादी करना अपराध है (तलाक के मामलों को छोड़कर), भले ही पति या पत्नी ऐसा करने की अनुमति देता है।

जाने क्‍या है मामला?

दिल्ली हाईकोर्ट में एक महिला ने अपने पति के खिलाफ केस कर आरोप लगाया कि उसका पति किसी दूसरी महिला के साथ रहता है। महिला की शादी साल 2003 में हुई थी लेकिन दोनों 2005 में अलग-अलग रहने लगे थे। वहीं, पति ने ये आरोप लगाया कि पत्नी ने उसके साथ क्रूरता की है और अपने भाई और रिश्तेदारों से उसकी पिटाई भी करवाई है।

इस मामले में केस करने वाली पत्नी ने पति पर आरोप लगाया कि उसके घरवालों ने उनकी शादी भव्य तरीके से की थी। इसके बावजूद पति ने उसके परिवार से कई तरह की डिमांड की। उसने आरोप में ये भी कहा कि उसकी सास ने उसे कुछ दवाइयां इस आश्वासन से दी थीं कि लड़का पैदा होगा, लेकिन उनका मकसद उसका गर्भपात कराना था। हालांकि इस जोड़े के दो बेटे हैं।

अदालत ने क्यों सुनाया ऐसा फैसला?

इस मामले में सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि दोनों सालों से अलग-अलग रह रहे थे। इसी दौरान मेरे पति ने दूसरी महिला के साथ अपना जीवन शुरू किया. ऐसे में दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि अगर कोई जोड़ा लंबे समय तक साथ नहीं रहा है तो उसका दोबारा मिलना संभव नहीं है। ऐसे में यदि पति किसी अन्य महिला के साथ सुख-शांति से रहने लगे तो इसे क्रूरता नहीं कहा जा सकता।

अदालत की राय है कि “भले ही यह पाया जाए कि तलाक के आवेदन के समय प्रतिवादी की पत्नी किसी अन्य महिला के साथ रह रही थी और उसके दो बेटे थे, यह कुछ परिस्थितियों में उत्पीड़न नहीं है।” यह माना गया कि इसे क्रूरता के रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता है जब आरोपी पति को किसी अन्य महिला के साथ रहने में सांत्वना मिलती है जो 2005 से साथ नहीं रही है और वर्षों के अलगाव के बाद शादी की कोई संभावना नहीं थी।

साथ ही इस मामले में ये भी कहा गया कि इस तरह के संबंध का परिणाम प्रतिवादी पति, संबंधित महिला और उसके बच्चों को भुगतान देना होगा। अदालत ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(आईए) के तहत क्रूरता के आधार पर पति को तलाक देने के पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली महिला की याचिका खारिज कर दी।

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