Sunday, October 13, 2024
HomeNationalसेल्यूट फ्लाइंग सिख मिल्खा एक जांबाज योद्धा

सेल्यूट फ्लाइंग सिख मिल्खा एक जांबाज योद्धा

खबर-संसार। भाग मिल्खा भाग ऐसे शब्द जो उनके पिता ने अंतिम मृत्यु समय में बोले थे उसके बाद से मिल्खा लगातार भागता ही रहा । जी हां महान एथलीट मिल्खा सिंह का जिक्र कर रहे हैं हम जिन्होंने अपनी जीवनी में अपने संघर्ष को बताने की कोशिश की है। शब्दों में बताना नामुमकिन है। जिसका छोटा सा अंश बता रहे हैं।

फिरोजपुर ऐसे शरणार्थियों का अथाह समुद्र बन गया था जो अपने परिचित चेहरों पति-पत्नी बच्चों अश्वर सुधारों को निराश होकर तलाश रहे थे हम सभी एक ही नाव में बचे रहने की खोज अथवा आश्रय की तलाश पर सवार थी कुछ दिन लक्षण घूमने के पश्चात में कैसे टूटे-फूटे घर में पहुंचा जो किसी मुस्लिम परिवार द्वारा छोड़ा गया था हालांकि अब हमारे सिर पर छत थी लेकिन हम दोनों के लिए पर्याप्त भोजन की तलाश हमारे लिए अब भी असंभव कार था लेकिन इन परिस्थितियों में पैसे की कमी ने मुझे अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु उपाय करने में कुशल बना दिया मैं सेना के बैरक में बार-बार जाता वहां से सिपाहियों के जूते पॉलिश करने उनके घर के छोटे-मोटे काम किया करता था जिसकी एवज में यह मुझे अपनी दाल रोटी इत्यादि जीते थे और मैं उसे जीत के साथ बैठकर खाता।

हमारा भाई मक्खन के साथ कोई संपर्क नहीं रह गया था जो अब भी अपनी रेजिमेंट के साथ पाकिस्तान में था लेकिन हमारे पास इस बात की चिंता करने का समय नहीं था हमारे सामने और भी समस्याएं थी अगस्त माह के अंत में सतलुज नदी में जो कि फिरोजपुर से होकर गुजरती थी जबरदस्त तूफान के साथ बाढ़ आ गई और शहर विनाशकारी बाढ़ में बह गया जी मक्खन की पत्नियों मिलकर सिंह की बहन ईश्वर की ननंद और मैंने अपनी जान एक जेल में घर की छत पर चढ़कर बचाई लेकिन हमारे पास जो कुछ भी थोड़ा बहुत सामान था सब पानी के साथ बह गया तब तक मैं फिरोजपुर में भरपूर तकलीफ झेल चुका था और वहां से निकलने तथा दिल्ली का रूप करने के लिए बेताब था वहां के बारे में सुना था कि काम ढूंढना आसान है एक दूसरे से चिपक कर ठसाठस भरे बहन के माध्यम से हम बाढ़ के पानी से गुजरकर रेलवे स्टेशन की ओर बढ़े। एक बार स्थान मानव समुद्र हमारे आस पास था स्टेशन पर लोगों की भीड़ जोकि दिशाहीन होने के कारण इधर-उधर घूम रही थी कि का अराजकता फैली हुई थी मेरी प्राथमिकता दिल्ली पहुंचना था लेकिन ट्रेन में इतनी अधिक भीड़ थी कि उस में बैठने के लिए सीट पाना असंभव था सौभाग्य बस जीत महिलाओं के आरक्षित डिब्बे में चढ़ने में कामयाब हो गई लेकिन मुझे केवल छत पर ही जगह मिल पाई रेल के डिब्बे की छत पर होने के कारण में लोगों के उस बड़े कार्यों को देख सकता था जिसमें पुरुष महिलाएं और बच्चे शामिल थे उसमें कुछ लोग पैदल कुछ बैलगाड़ी साइकिल अथवा किसी अन्य साधन से भारत या पाकिस्तान की ओर बढ़ रहे थे।

यह हृदय विदारक दृश्य था व्यापक स्तर पर ऐसे लोगों को प्लान जो अपने सगे संबंधियों घर और परिवारों को खो चुके थे इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी ओं में से एक था।
किसी तरह पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचेमुझे अजमेरी गेट पर एकमत दुकान में साफ सफाई का काम मिला जहां मुझे ₹10 वेतन मिलता था जीत और मैंने रेलवे स्टेशन पर अराजकता से भरे क्वेश्चन बताएं जहां पर हम बेघर लोगों के साथ घुल मिलकर रहते थे।उन दिनों भारी इतनी जबरदस्त थी कि धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा बांटे जाने वाले मुक्त खाने को झगड़ने के लिए लोग टूट पड़ते थे इस दौरान मुझे पता चला कि मेरी बहन ईश्वर उसके पति और परिवार उस विद्वान से बच गए थे और शाहदरा में रहते हैं जब हम उनके घर पहुंचे तो परिवार का पुनर्मिलन अशोक भरावा मर्मस्पर्शी डाला कि मेरी एक खुशी कुछ दिनों के लिए ही थी मैंने देखा कि उस घर में मेरी बहन के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है मेरी बेचारी बहन उस घर में बिना तनख्वाह की नौकरानी की तरह काम करती थी। मेरी बहन इशर चुपके से रोटी दे देती थी।

उसी समय हम लोगों ने यह सुना था कि मक्खन सिंह और उसकी सेना की टुकड़ी वापस भारत आ गई अभी मुझे उम्मीद थी कि एक बार फिर मैं भारत की सारी चिंताओं से मुक्त हो रेल के पीछे दौड़ती पतंग उड़ाता या पर दोस्तों के साथ हंसी मजाक करता हुआ आजाद पक्षी बनूंगा। 1960 में जब मिल्खा सिंह ने पाकिस्तान में रेस जीती थी तो वहां के राष्ट्रपति जनरल अयूब उनसे बोले तुम दौड़े नहीं यार तुम तो उड़े यहीं से मिलकर का नाम फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर हुआ

RELATED ARTICLES
-Advertisement-spot_img
-Advertisement-spot_img
-Advertisement-spot_img
-Advertisement-
-Advertisement-spot_img
-Advertisement-spot_img

Most Popular

About Khabar Sansar

Khabar Sansar (Khabarsansar) is Uttarakhand No.1 Hindi News Portal. We publish Local and State News, National News, World News & more from all over the strength.