सोने की लगातार बढ़ती कीमतों ने निवेशकों और केंद्रीय बैंकों दोनों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। दुनियाभर के कई केंद्रीय बैंक अब अपने सोने के भंडार को ऐतिहासिक स्तर तक बढ़ा रहे हैं। विशेषज्ञ इसे दशकों में सबसे बड़े भंडार विस्तार के रूप में देख रहे हैं।
भंडार बढ़ाने का रणनीतिक कारण
विशेषज्ञों का कहना है कि सोने की खरीदारी केवल आपूर्ति की कमी या डर के कारण नहीं हो रही। यह एक रणनीतिक कदम है, जो आर्थिक अस्थिरता और भूराजनीतिक तनाव के समय में निवेश की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
सोने की कीमतों का भविष्य
मॉर्गन स्टेनली के अनुसार, साल 2026 में सोने की कीमत 4,900 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच सकती है। वहीं, गोल्डमैन सैक्स का कहना है कि पारंपरिक मुद्राओं में गिरावट के समय सोना और बिटकॉइन तेजी से ऊपर जाते हैं। आरबीआई की तरफ से 2025 में लगभग 900 टन सोने की खरीदारी की उम्मीद है, जो पिछले तीन साल के औसत से अधिक है।
डी-डॉलराइजेशन और उभरते बाजार
इन्फॉर्मेटिक्स रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मनोरंजन शर्मा के अनुसार, सोने के भंडार का बड़ा हिस्सा डी-डॉलराइजेशन यानी अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने की रणनीति से प्रेरित है। चीन, भारत, रूस, तुर्की और कई मध्य पूर्वी देश इस रणनीति को अपनाते दिख रहे हैं।
पारंपरिक मुद्राओं पर संशय
IMF के COFER डेटा के अनुसार, अमेरिकी डॉलर वैश्विक भंडार का 58 प्रतिशत हिस्सा रखता है, लेकिन इसका प्रभुत्व धीरे-धीरे कम हो रहा है। रूस पर वित्तीय प्रतिबंध और अन्य देशों पर संभावित कदमों ने कई सरकारों को अमेरिकी संपत्तियों में भारी निवेश से हिचकिचाया है।
सोना क्यों खास है
सोना किसी देश की नीतियों से बंधा नहीं होता। इसे घरेलू स्तर पर भंडारित किया जा सकता है और वैश्विक बाजार में खरीदा-बेचा जा सकता है। यही कारण है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए सोना निवेश का सबसे सुरक्षित और आकर्षक विकल्प बन गया है।
इसे भी पढ़े- पवन खेड़ा की कोर्ट में होगी पेशी, ट्रांजिट रिमांड पर असम ले जाएगी पुलिस



