बिहार विधानसभा चुनाव के ताज़ा रुझानों में एनडीए ने दमदार प्रदर्शन दिखाते हुए एक बार फिर राज्य की राजनीति पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त लोकप्रियता गठबंधन को ऐतिहासिक विजय की ओर ले जाती दिख रही है। मौजूदा संकेत इस ओर इशारा कर रहे हैं कि एनडीए 2010 के उस रिकॉर्ड को चुनौती दे सकता है, जब उसने 206 सीटें जीती थीं। चुनाव आयोग द्वारा दोपहर 12:52 बजे जारी आंकड़ों के अनुसार, एनडीए कुल 199 सीटों पर आगे चल रहा है। इसमें भाजपा 90, जदयू 81, लोजपा 21, हम 3 और आरएलएम 4 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है।
महागठबंधन 41 सीटों पर, AIMIM व BSP भी दिखा रही पकड़
विपक्षी महागठबंधन फिलहाल 41 सीटों पर आगे चल रहा है। इसमें राजद 29, कांग्रेस 4, भाकपा (माले) 5, माकपा 1 सीट पर बढ़त बनाए हुए है। इसके अलावा बसपा 1 और एआईएमआईएम 5 सीटों पर आगे है।
लगभग दो दशकों से बिहार की राजनीति का केंद्रीय चेहरा बने नीतीश कुमार के लिए यह चुनाव राजनीतिक सहनशक्ति की एक बड़ी परीक्षा मानी जा रही थी। “सुशासन” के नाम पर उनकी पहचान को हाल के वर्षों में बदलते समीकरणों और मतदाताओं की थकान ने चुनौती दी थी। बावजूद इसके, मौजूदा रुझान साफ संकेत देते हैं कि जनता ने एक बार फिर उनके शासन मॉडल पर भरोसा जताया है।
मोदी–नीतीश गठबंधन का तालमेल बना जीत का मुख्य आधार
प्रधानमंत्री मोदी का राष्ट्रीय प्रभाव और नीतीश कुमार की जमीनी पकड़ इस चुनाव में निर्णायक कारक साबित हुई है। भाजपा-जदयू गठबंधन ने कल्याणकारी योजनाओं, बुनियादी ढांचे के विकास और प्रशासनिक स्थिरता को केंद्र में रखकर चुनाव प्रचार किया। राज्य में इस साझेदारी का असर साफ झलक रहा है, जो एनडीए को प्रचंड बहुमत की राह पर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
बिहार में चुनावी हिंसा पर नियंत्रण, अतीत से बड़ा बदलाव
इस चुनाव ने एक और बदलाव दिखाया है—चुनावी हिंसा में भारी कमी। 1985 में 63 मौतें, 1990 में 87 मौतें और 2005 में 660 केंद्रों पर पुनर्मतदान जैसी स्थितियों की तुलना में इस बार चुनाव प्रबंधन शांतिपूर्ण और पारदर्शी रहा, जो प्रशासनिक सुधारों की तस्वीर पेश करता है।
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