वक्फ एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज दोपहर 2 बजे से शुरू हो गई है। इस कानून के खिलाफ 20 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई हैं। पहले यह सुनवाई तीन जजों की बेंच को करनी थी, लेकिन अब CJI संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की दो जजों की बेंच यह सुनवाई कर रहे हैं।
याचिकाओं में कहा गया है कि वक्फ कानून में किया गया संशोधन असंवैधानिक है, यह मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है और सरकार को मनमाने फैसले लेने का अधिकार देता है। इसलिए इस एक्ट को रद्द करने और लागू करने पर रोक लगाने की मांग की गई है। कांग्रेस, जेडीयू, आम आदमी पार्टी, डीएमके, सीपीआई जैसी पार्टियों ने भी इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। साथ ही जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कुछ एनजीओ भी इस कानून के संशोधन के खिलाफ हैं। कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद समेत कई याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। असदुद्दीन ओवैसी भी आए कार्यवाही देखने आए हैं।
‘यह धार्मिक मामलों में दखल है’
सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा कि यह धार्मिक मामलों में दखल है। सविंधान धार्मिक मामलों में प्रबंधन का अधिकार देता है। इस दौरान उन्होंने नए कानून की कमियों को बताया। वहीं, CJI ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि आपका मुख्य तर्क क्या हैं। इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता का हनन है।
वक्फ कानून पर कपिल सिब्बल ने दी मुस्लिम विरासत की दलील
कपिल सिब्बल ने कहा, राज्य (सरकार) कौन होता है यह तय करने वाला कि मुस्लिमों में संपत्ति का बंटवारा (विरासत) कैसे होगा?” इस पर मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने उन्हें बीच में टोकते हुए कहा, “हिंदुओं के मामले में भी संपत्ति की विरासत संसद ने बनाए गए हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत तय होती है।”
सीजेआई ने कहा, “हिंदुओं के लिए भी ऐसा ही होता है, इसलिए संसद ने मुसलमानों के लिए भी कानून बनाया है। यह जरूरी नहीं कि मुस्लिमों के लिए बनाया गया कानून ठीक वैसा ही हो जैसा हिंदुओं के लिए है।” उन्होंने आगे कहा, “संविधान का अनुच्छेद 26 इस तरह के कानून बनाने पर कोई रोक नहीं लगाता। यह अनुच्छेद सबके लिए है और पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष है, यानी यह सभी धर्मों पर बराबरी से लागू होता है।”
‘मुस्लिमों के मौलिक अधिकारों का हनन है’
सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि अब तक वक्फ काउंसिल और बोर्ड में सिर्फ मुस्लिम ही शामिल होते थे, लेकिन संशोधन के बाद अब हिंदू भी इसका हिस्सा बन सकते हैं। यह सीधा-सीधा संसद द्वारा बनाए गए कानून के ज़रिए मुस्लिमों के मौलिक अधिकारों का हनन है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इसमें सिर्फ 20 ही गैर मुस्लिमों को जगह देने की बात कही गई है।
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