Saturday, March 22, 2025
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चुनावी आंकड़ों वाला फॉर्म 17C क्या है? CJI के सवाल, किस बात पर मचा बवाल

चुनावी आंकड़ों वाला फॉर्म 17C क्या है? CJI के सवाल, किस बात पर मचा बवाल, भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) 17वीं लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत के आंकड़ों को लेकर कई सवालों का सामना कर रहा है। 22 मई को चुनाव निकाय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने अपनी वेबसाइट पर प्रत्येक मतदान केंद्र पर डाले गए वोटों का रिकॉर्ड यानी फॉर्म 17सी को अपलोड नहीं कर सकता है। आयोग की तरफ से ये हलफनामा लोकसभा चुनाव के शेष दो चरणों से पहले आया है। जैसा कि भारत में नई सरकार के चयन को लेकर वोटिंह हो रही है। आइए एक नजर डालते हैं कि फॉर्म 17सी क्या है और किस वजह से ये चर्चा में है।

फॉर्म 17सी क्या है?

फॉर्म 17C देशभर के मतदान केंद्रों पर डाले गए वोटों का दस्तावेज है। इसमें अलग-अलग डेटा शामिल होते हैं जैसे प्रत्येक मतदान केंद्र को आवंटित मतदाता, किसी क्षेत्र में पंजीकृत मतदाताओं की कुल संख्या, उन मतदाताओं की संख्या जिन्होंने वोट न डालने का फैसला किया, जिन्हें वोट डालने की अनुमति नहीं थी, दर्ज किए गए वोटों की कुल संख्या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) पर, और मतपत्रों और पेपर सील के बारे में जानकारी। फॉर्म 17सी के दूसरे भाग में उम्मीदवार का नाम और उन्हें मिले कुल वोट शामिल होते हैं। इस बात का भी डेटा है कि बूथ पर दर्ज किए गए वोट कुल पड़े वोटों के बराबर हैं या नहीं।

वोटिंग पर्सेंटेज डेटा पर विवाद

विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अंतिम मतदान प्रतिशत डेटा जारी करने में देरी पर चुनाव आयोग पर सवाल उठाया है। मतदान निकाय द्वारा मतदान के अंतिम आंकड़े 19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान के 11 दिन बाद साझा किए गए, जबकि अगले तीन चरणों के लिए इसमें चार-चार दिन की देरी हुई। आलोचकों ने यह भी कहा है कि चुनाव आयोग ने इस बार प्रत्येक संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की पूर्ण संख्या का खुलासा नहीं किया है। उन्होंने मतदान के दिन साझा किए गए अनंतिम आंकड़ों की तुलना में पहले दो चरणों में अंतिम मतदान आंकड़ों में अचानक वृद्धि को भी चिह्नित किया।

डेटा अपलोड क्यों नहीं किया

17 मई को पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा था कि वह मतदाता मतदान डेटा अपलोड क्यों नहीं कर सका। चुनाव निकाय ने अपने हलफनामे में एडीआर की आलोचना करते हुए कहा कि वह चुनाव अवधि के बीच में एक अधिकार पैदा करने की कोशिश कर रहा था। एनजीओ ने चुनाव आयोग पर अंतिम मतदान प्रतिशत डेटा प्रकाशित करने में अनुचित देरी का आरोप लगाया था। इसमें प्रारंभिक मतदान प्रतिशत की तुलना में अंतिम आंकड़ों में तेज वृद्धि पर भी आशंका व्यक्त की गई। चुनाव आयोग ने शीर्ष अदालत को बताया कि पहले दो चरणों में अंतिम मतदान डेटा में पांच से छह प्रतिशत की वृद्धि का आरोप भ्रामक और निराधार था। शीर्ष अदालत इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार (24 मई) को करने वाली है।

EC ने क्या कहा है?

एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें मतदान समाप्त होते ही चुनाव आयोग की वेबसाइट पर फॉर्म 17सी की स्कैन की गई प्रतियां अपलोड करने के लिए ईसीआई को निर्देश देने की मांग की गई थी। 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब देने को कहा। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि मतदान केंद्र-वार मतदान प्रतिशत के आंकड़े बिना सोचे-समझे जारी करने और वेबसाइट पर पोस्ट करने से लोकसभा चुनावों में व्यस्त मशीनरी में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाएगी।

जवाबी हलफनामे में आयोग ने कहा है कि उम्मीदवार या उसके एजेंट के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को फॉर्म 17C प्रदान करने का कोई कानूनी अधिदेश नहीं है। इसने कहा कि मतदान केंद्र पर डाले गए मतों की संख्या बताने वाले फॉर्म 17सी को सार्वजनिक रूप से पोस्ट करना वैधानिक ढांचे के अनुरूप नहीं है और इससे पूरी चुनावी प्रक्रिया में शरारत एवं गड़बड़ी हो सकती है, क्योंकि इससे छवियों के साथ छेड़छाड़ की संभावना बढ़ जाती है।

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