अगर आप ऑनलाइन पेमेंट करते हैं तो जान लें इनकम टैक्स का नया नियम जी, हां भारत में इनकम टैक्स कानूनों में एक अहम बदलाव होने जा रहा है, जिसका सीधा असर आम नागरिकों की डिजिटल प्राइवेसी पर पड़ सकता है। 1 अप्रैल 2026 से इनकम टैक्स विभाग टैक्स चोरी की जांच के दौरान केवल भौतिक संपत्तियों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि नागरिकों की डिजिटल गतिविधियों तक भी पहुंच बना सकेगा।
अब सिर्फ कैश और ज्वेलरी नहीं, डिजिटल अकाउंट भी रडार पर
अब तक इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 132 के तहत छापेमारी के दौरान नकदी, गहने, दस्तावेज और प्रॉपर्टी जैसी भौतिक संपत्तियों की ही जांच होती थी। लेकिन प्रस्तावित बदलावों के बाद टैक्स अधिकारी तथाकथित “वर्चुअल डिजिटल स्पेस” को भी जांच के दायरे में ला सकेंगे।
इस डिजिटल स्पेस में ईमेल अकाउंट, क्लाउड स्टोरेज, डिजिटल वॉलेट, ट्रेडिंग और निवेश प्लेटफॉर्म, क्रिप्टो एसेट्स, सोशल मीडिया प्रोफाइल और अन्य ऑनलाइन अकाउंट शामिल होंगे। यानी Gmail से लेकर सोशल मीडिया चैट तक टैक्स जांच का हिस्सा बन सकती है।
सरकार ने क्यों जरूरी समझा यह बदलाव?
सरकार का कहना है कि आज के समय में ज्यादातर वित्तीय लेनदेन डिजिटल माध्यमों से हो रहे हैं। बैंकिंग, निवेश, ट्रेडिंग और क्रिप्टो ट्रांजैक्शन तक अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर निर्भर हैं। ऐसे में केवल फिजिकल रेड के जरिए टैक्स चोरी पकड़ना प्रभावी नहीं रह गया है।
अधिकारियों के अनुसार, किसी व्यक्ति की पूरी वित्तीय गतिविधि उसकी डिजिटल फुटप्रिंट में छिपी होती है। डिजिटल डेटा तक पहुंच मिलने से टैक्स चोरी के मामलों की पहचान अधिक सटीक तरीके से की जा सकेगी।
क्या टैक्स अधिकारी किसी का भी डेटा कभी भी देख सकेंगे?
इस नियम को लेकर सबसे बड़ी चिंता प्राइवेसी को लेकर है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि टैक्स अधिकारी मनमाने तरीके से किसी का डिजिटल डेटा एक्सेस नहीं कर पाएंगे। जैसे पहले छापेमारी के लिए “रीजन टू बिलीव” जरूरी होता था, वही शर्त डिजिटल अकाउंट्स पर भी लागू रहेगी।
टैक्सपेयर्स के लिए क्या है इसका मतलब?
इस बदलाव से टैक्स सिस्टम में पारदर्शिता बढ़ेगी। ईमानदार टैक्सपेयर्स को घबराने की जरूरत नहीं है, लेकिन डिजिटल लेनदेन को लेकर सतर्क रहना जरूरी होगा। सही जानकारी और समय पर इनकम डिक्लेयर करना पहले से ज्यादा अहम हो जाएगा।
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