नई दिल्ली, खबर संसार : उत्तरी नगर निगम नई दिल्ली ने मीट को लेकर प्रस्ताव पास किया है। कि वह हलाल का मीट बेच रहे हैं या झटके का। ये नियम उत्तरी नगर निगम नई दिल्ली इलाके के रेस्तराओं पर भी लागू होगा। रेस्तरा और ढाबों में भी पोस्टर लगाकर बताना होगा कि उनके यहां परोसे जाना वाला मीट हलाल है या झटका। इस लिए ग्राहकों को मांस के बारे में सही जानकारी से अवगत कराना है ताकि वो अपनी पसंद-नापसंद का ख्याल रख सकें।
हलाल और झटके में अंतर
इन दिनों हलाल और झटके के मीट को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। इन दोनों तरीकों में एक तेज धार वाला हथियार होता है और एक जानवर की गर्दन होती है। दोनों ही तरीको से जानवर की गर्दन काटी जाती है। इन दोनों तरीको में अंतर अब विवादों का माहौल बन चुका है।
क्या है धार्मिक अंतर
मुस्लिम समुदाय के लोग हलाल का ही मीट खाते है, लेकिन पंजाबी और हिन्दू समुदाय के लोग झटका मीट को ही पसंद करते हैं। हलाल करने से पहले कलमा पढऩे और गर्दन पर तीन बार छुरी फेरने की मान्यता है। इस्लाम में कहा गया है कि जानवरी हलाल के समय बेहोश नहीं होना चाहिए।
काटने के तरीके में अंतर
हलाल मीट के लिए जानवर की गर्दन को एक तेज धार वाले चाकू से रेता जाता है. सांस वाली नस कटने के कुछ ही देर बाद जानवर की जान चली जाती है. मुस्लिम मान्यता के मुताबिक हलाल होने वाले जानवर के सामने दूसरा जानवर नहीं ले जाना चाहिए. एक जानवर हलाल करने के बाद ही वहां दूसरा ले जाना चाहिए। झटका मीट के लिए जानवर को काटने से पहले इलेक्ट्रिक शॉक देकर उसके दिमाग को सुन्न कर दिया जाता है ताकि वो ज्यादा संघर्ष न करे. उसी अचेत अवस्था में उस पर झटके से धारदार हथियार मारकर सिर धड़ से अलग कर दिया जाता है।