Sunday, January 19, 2025
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राजनीति का चोला ओढ़े लोग जनसेवा से कोई लेना देना नहीं सिर्फ दिखावे और अपने और अपने परिवार के लिए!

खबर संसार हल्द्वानी.राजनीति का चोला ओढ़े लोग जनसेवा से कोई लेना देना नहीं सिर्फ दिखावे और अपने और अपने परिवार के लिए अकूत संपत्ति एकत्रित करना उनका लक्ष्य! जी हां बात कर रहे हैं उत्तराखंड की जहां यूपी के समय यानि अविभाजित उत्तर प्रदेश उत्तराखंड की 19 विधानसभा सीट हुआ करती थी जो आप 70 सीट हैं,वास्तविकता ये है कि पहाड़ के 10 जिलों की जनप्रतिनिधि हल्द्वानी देहरादून हरिद्वार से पहाड़ की राजनीति चला रहे हैं

राजनीति का चोला ओढ़े लोग जनसेवा से कोई लेना देना नहीं सिर्फ दिखावे और अपने और अपने परिवार के लिए 

देश में लगातार राज्यों की संख्या बड़ी जा रही है जिसका सीधा-सीधा लाभ राजनेताओं के साथ नौकरशाओं को होता है और उनका प्रमोशन क्रम बढ़ जाता है पटवारी कानून को और कानून को तहसीलदार तहसीलदार एसडीएम स्तर का रेंक पाता है इसी तरह नेताओं में भी ये क्रम आप आसानी से समझ सकते है.भारत का राजनीतिक इतिहास बताता है की राजनीति का मुख्य उद्देश्य जनता की सेवा और उनके हितों की रक्षा करना है समय के साथ राजनीति में ऐसे कई नेता हुए जिन्होंने अपनी निष्ठा और जनसेवा के माध्यम से राजनीति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा लेकिन आज के दौर में राजनीति का अर्थ बदल चुका है आज राजनीति में प्रवेश करने वाले अधिकांश नेता जन सेवा की बजाय अपनी सेवा को प्राथमिकता दे रहे हैं.

आज के दौर में राजनीति का अर्थ बदल चुका है

उत्तराखंड की 24 वर्षों का इतिहास स्पष्ट करता है कि राज्य निर्माण के लिए पहाड़ की आवाज उठाने वाले नेताओं का मुख्य उद्देश्य जनहित से अधिक अपना हित प्रमुख रहा है. राज्य निर्माण के बाद पहाड़ के विकास का सपना दिखाया गया वास्तविकता यह है कि केवल नेताओं का विकास हुआ है हल्द्वानी देहरादून और श्रीनगर जैसे स्थानों में पहाड़ी जनप्रतिनिधियों के भाव बंगलेश की मिसाल है अब एक बार फिर विधानसभा लोकसभा सीटों के भौगोलिक परिसीमन की बात हो रही है इसका तरकीय दिया जा रहा है कि पहाड़ की कठिन भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए यदि परिसीमन किया जाए तो अधिक सिम मिलेगी जिससे पहाड़ की समस्याओं को मंच मिलेगा और उनके विकास को गति मिलेगी लेकिन इस तर्क का असली मकसद सिर्फ जनता को गुमराह करना है सीटों की संख्या बढ़ने से सबसे अधिक लाभ केवल नेताओं को होता है जनता को करता ही नहीं पहाड़ का हाल तो आज भी वही है युवा रोजगार के लिए बाहर जा रहे हैं पहले तो कुछ साल बाद लौट आते थे लेकिन अब कभी लौटकर नहीं आते वीरान पहाड़ और निस्तेज हो गया है घरों में उग आई खरपतवार और सन्नाटा इसके गवाह है.

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