भारतीय टेनिस की दिग्गज खिलाड़ी सानिया मिर्जा को जिंदगी अपनी शर्तों पर जीने का कोई मलाल नहीं है। कई लोग सानिया को नये मानदंड (ट्रेंड-सेटर) स्थापित करने वाले मानते है जबकि कुछ उन्हें बंधनों को तोड़ने वाला करार देते हैं।
खुद सानिया हालांकि इन बातों से इत्तेफाक नहीं रखती। उनका मानना है कि वह बस ‘अपनी शर्तों पर’ जीवन जीना चाहती है। सानिया ने टेनिस में आश्चर्यजनक सफलता हासिल की है जिसके आसपास कोई भी भारतीय महिला टेनिस खिलाड़ी नहीं है।
मौजूदा खिलाड़ियों को भी देखें तो निकट भविष्य में सानिया के बराबर सफलता हासिल करने की कुव्वत किसी में भी नजर नहीं आ रही है। सानिया ने एक प्रेरक जीवन जिया है। सानिया मिर्जा ने दुबई में अपने आवास पर ‘पीटीआई-भाषा’ से की गयी बातचीत में कहा जो लोग अपने तरीके से काम करने की हिम्मत करते हैं उसे लेकर समाज को मतभेदों को स्वीकार करना चाहिए और किसी को ‘खलनायक या नायक’ के तौर पर पेश करने से बचना चाहिये।
अंतरराष्ट्रीय टेनिस को अलविदा की घोषणा कर चुकी सानिया ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि मैंने किसी नियम या बंधन को तोड़ा हैं। ये कौन लोग हैं जो इन नियमों को बना रहे हैं और ये कौन लोग हैं जो आदर्श होने की परिगढ़ रहे हैं।’’ दुबई में अपना आखिरी टूर्नामेंट (डब्ल्यूटीए) खेल रही सानिया ने कहा, ‘‘ मुझे लगता है कि हर व्यक्ति अलग है और हर व्यक्ति को अलग होने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।’’
सानिया मिर्जा ने कहा, ‘‘ मैं खुद ईमानदारी के साथ रहने की कोशिश करती हूं
छह ग्रैंड स्लैम युगल खिताब और साल के अंत में डब्ल्यूटीए चैंपियनशिप ट्रॉफी हासिल करने के साथ ही एकल करियर में 27वें स्थान के साथ सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग के बाद भी, अगर सानिया ‘ट्रेंड-सेटर’ नहीं हैं तो वह क्या है? सानिया ने कहा, ‘‘ मैं खुद ईमानदारी के साथ रहने की कोशिश करती हूं। मैंने यही करने की कोशिश की है।
मैंने खुद के प्रति सच्चे रहने की कोशिश की है। और मैंने जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने की कोशिश की है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हर किसी को ऐसा करने में सक्षम होना चाहिए और ऐसा करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। किसी के लिए यह नहीं कहना चाहिये कि आप नये मानदंड गढ़ रहे हैं। आप नियम तोड़ रहे हैं क्योंकि आप कुछ ऐसा कर रहे हैं जो आप करना चाहते हैं।’’
इस दिग्गज खिलाड़ी ने कहा, ‘‘ यह एक ऐसी चीज है जिस पर मुझे बहुत गर्व है क्योंकि यह जरूरी नहीं कि मैं दूसरों से अलग रहूं। मैं आपके लिए अलग हो सकती हूं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं कोई बागी हूं, या किसी तरह के नियम तोड़ रही हूं।’’ पिछले कुछ वर्षों में भारतीय खेल में बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन हाल के वर्षों तक महिला एथलीटों को स्वीकृति और मान्यता के लिए संघर्ष करना पड़ा था।
उन्हें खेल में करियर बनाने के योग्य भी नहीं माना जाता था और अगर कोई मुस्लिम परिवार से था तो उसके लिए और मुश्किलें थी। सानिया ने कहा कि महिला एथलीटों का समर्थन नहीं करना सिर्फ मुस्लिम परिवारों तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि यह सिर्फ मुस्लिम समुदाय का मुद्दा है।
यह समस्या उपमहाद्वीप में ही है। अगर ऐसा नहीं होता तो हमारे पास सभी समुदायों से बहुत अधिक युवा महिलाएं खेलती हुई दिखती।’’ उन्होंने कहा, ‘‘आपने मैरीकॉम को भी यह कहते हुए सुना होगा कि लोग नहीं चाहते थे कि वह मुक्केबाजी करे। वास्तव में इसका किसी समुदाय से कोई लेना-देना नहीं है। मैं एक ऐसे परिवार से आती हूं जो अपने समय से बहुत आगे था, जिसने अपनी युवा लड़की को टेनिस खेलने के लिए प्रेरित किया।
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