दुनिया में पहले से ही कई विवाद चल रहे हैं और अब अफगानिस्तान का मामला फिर सुर्खियों में है। दरअसल, अमेरिका और तालिबान के बीच बगराम एयरबेस को लेकर नया टकराव सामने आया है। यह विवाद पुराना है, लेकिन हाल ही में अमेरिका की गतिविधियों ने तालिबान को नाराज़ कर दिया है।
तालिबान ने साफ शब्दों में कहा है कि वह अपने देश की संप्रभुता पर किसी तरह का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा, खासतौर पर अमेरिका से। डोनाल्ड ट्रंप के बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए तालिबान ने कहा कि उनकी विदेश नीति संतुलित और आर्थिक सहयोग पर केंद्रित है, लेकिन वे अपनी जमीन का एक इंच भी किसी को नहीं देंगे।
तालिबान की अमेरिका को दो टूक
तालिबान ने अमेरिका को दोहा समझौते की याद दिलाते हुए कहा कि वॉशिंगटन ने यह वादा किया था कि वह अफगानिस्तान की राजनीतिक स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करेगा। संगठन ने चेतावनी दी कि अगर अमेरिका निवेश, कृषि और व्यापार जैसे क्षेत्रों में सहयोग चाहता है, तो उसका स्वागत है, लेकिन किसी भी प्रकार की “लालची महत्वाकांक्षा” अफगानिस्तान के इतिहास से सबक लेने पर मजबूर कर देगी।
क्यों खास है बगराम एयरबेस?
बगराम एयरबेस अफगानिस्तान का सबसे बड़ा और रणनीतिक रूप से अहम हवाई अड्डा है, जो परवान प्रांत में स्थित है। यह काबुल, कंधार और बामियान जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा है। 1950 के दशक में सोवियत संघ ने इसे बनाया था। बाद में सोवियत-अफगान युद्ध और फिर अमेरिकी कब्जे के दौरान यह केंद्र बिंदु रहा।
2001 के बाद अमेरिका ने तालिबान शासन को हटाकर इस एयरबेस पर नियंत्रण किया और इसे 20 सालों में एक विशाल सैन्य ठिकाने में बदल दिया। यहां कैदियों को रखा जाता था और इसे ग्वांतानामो बे जैसा यातना केंद्र भी कहा गया।
पाकिस्तान की खुशी और कूटनीतिक पेच
अमेरिका-तालिबान तनाव से सबसे ज्यादा फायदा पाकिस्तान को हो सकता है। अमेरिका, अफगानिस्तान पर दबाव बनाने के लिए पाकिस्तानी जमीन का इस्तेमाल कर सकता है। इससे इस्लामाबाद को सामरिक महत्व मिलेगा, लेकिन इसके चलते चीन की नाराज़गी भी झेलनी पड़ सकती है।
इसे भी पढ़े- पवन खेड़ा की कोर्ट में होगी पेशी, ट्रांजिट रिमांड पर असम ले जाएगी पुलिस



