Monday, December 2, 2024
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कोरोना से बेहद Dangerous था 1918 का फ्लू, मरे थे करोड़ों

नई दिल्ली खबर संसार: कोरोना से बेहद Dangerous था 1918 का फ्लू, मरे थे करोड़ों ।  वर्तमान में हर रोज 1.50 लाख से ऊपर कोरोना संक्रमितों की संख्या सामने आ रही है। मौत के आंकड़े और श्मशान में धधकती चिताएं लोगों को झकझोर दे रही हैं।

कोरोना संक्रमण का यह दूसरा चरण पहले चरण से बेहद Dangerous नजर आ रहा है। 14 अप्रैल, 2021 को संक्रमितों की संख्या 1 करोड़ 38 लाख से ज्यादा हो गई है। इसके पहले भी 1918 में फैले स्पेनिश फ्लू ने अपने दूसरे दौर में पहले से ज्यादा भयानक कहर ढाया था। भारत में इस Dangerous बीमारी की शुरुआत मुंबई से हुई थी।

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अक्टूबर 1918 का वह दौर

अक्टूबर 1918 में फैले स्पेनिश फ्लू के संक्रमण का दूसरा दौर फैल रहा था तब मुंबई के अखबारों ने लोगों को घर पर रहने की सलाह दी। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा था कि बीमारी मुख्य रूप से मानव संपर्क के माध्यम से नाक और मुंह से संक्रमित स्राव के माध्यम से फैलती है। लगातार अपील की जा रही थी, सभी को उन जगहों से दूर रखना चाहिए जहां भीड़भाड़ होती है और संक्रमण का Dangerous होता है जैसे कि मेलों, त्योहारों, थिएटरों, स्कूलों, सार्वजनिक व्याख्यान हॉल, सिनेमा, मनोरंजन दलों, भीड़, रेलवे आदि।

बॉम्बे फीवर या बॉम्बे इंफ्लुएंजा

बीमारी के प्रसार और गंभीरता को देखते हुए इसे बॉम्बे फीवर या बॉम्बे इंफ्लुएंजा भी कहा जाता है। बंबई में महामारी इतनी तेजी से फैली कि देखते ही देखते शहर में हाहाकार मच गया। रिसर्चर डेविड अर्नाल्ड अपने रिसर्च पेपर Death and the Modern Empire : The 1918-19 Influenza Epidemic in India में लिखते हैं कि सिर्फ एक ही दिन में, 6 अक्टूबर 1918 में बंबई में मौतों का आधिकारिक आंकड़ा 768 था।

स्पैनिश फ्लू के दो दौर आए

भारत में बॉम्बे फीवर या स्पैनिश फ्लू के दो दौर आए। पहले संक्रमण ने बच्चों और बुजुर्गों जिनकी प्रतिरोधक क्षमता होते ही अपनी चपेट में लिया। लेकिन इसका दूसरा दौर बेहद Dangerous था जिसने 20 से 40 साल के कई युवाओं को मौत के घाट उतार दिया। घरों में रहने वाली महिलाएं इस बीमारी का सबसे अधिक शिकार हुईं।  स्पेनिश फ्लू का दूसरा दौर भी सितंबर-अक्टूबर 1918 में बंबई से शुरू हुआ और एक महीने में यह समूचे भारत से लेकर श्रीलंका तक फैल गया था।

मुंबई में प्रति 1000 मरीजों में 54 मौतें हुईं वहीं मद्रास और कलकत्ता (अब कोलकाता) में यह थोड़ी कम रही। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि किस तरह इस बीमारी के दोनों दौर की शुरुआत मुंबई, मद्रास और कलकत्ता जैसे बड़े शहरों, जो उस समय में विदेश से आने वाले जहाजों के बंदरगाह से हुई। रिसर्च के अनुसार कहा जा सकता है कि अगर 2004 में इसी तरह की महामारी होती है तो दुनिया में लगभग 62 मिलियन मौतें होने की आशंका है। उन्होंने चेताया था कि ऐसी स्थिति में भारत में विश्व में सर्वाधिक मौतें (लगभग 14.8 मिलियन) हो सकती हैं।

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