खबर संसार, नई दिल्ली: उत्तराखंड के forests में हर वर्ष गर्मियों के मौसम में आग लग जाती है, जिसके चलते करोड़ों का नुकसान हो जाता है। इस वर्ष कम बारिश होने से जंगलों में आग की रिकार्ड तोड़ घटनाएं हो चुकी हैं।
forests में आग लगने का मुख्य कारण पिरूल के पेड़ों को माना जाता है। पिरूल पेट्रोल से भी ज्यादा ज्वलनशील है। ये पल भर में जंगलों को खाक कर देती है।
बेहद खास हैं चीड़ के पेड़
पिरूल के पेड़ कई मायनों में खास है। forests में पाये जाने वाले चीड़ के पेड़ से जहां लीसा निकलता है, वहीं इसका उपयोग कई प्रकार की दवाइयों में भी किया जाता है। इमारती लकड़ी के चीड़ का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है।
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पर्यावरण मामलों के जानकार का कहना है कि पिरूल का सही उपयोग होने पर वो उतना बेहद फायदेमंद भी है। लेकिन राज्य सरकारों में अभी तक इस दिशा में कोई ठोस प्लानिंग नहीं की है।
चीड़ की पत्तियों से होता है बिजली उत्पादन
चीड़ की पत्तियों से बिजली उत्पादन भी किया जाता है। उत्तराखंड में छोटे स्तर पर सही लेकिन कई संस्थाएं इससे बिजली पैदा कर रही हैं। जबकि, विदेशों में तो इसका इस्तेमाल गार्डनिंग के साथ ही चाय बनाने के लिए भी होता है। पेंट, पेपर, पेपर बोर्ड और फ्यूल बनाने में भी इसका अहम रोल हैं। पिरूल के इस्तेमाल के लिए उत्तराखंड ने अलग पॉलिसी तो बनाई है, लेकिन उस पर अमल होता नहीं दिखाई देता।
मजबूत इच्छा शक्ति नहीं
अगर पिरूल का सही इस्तेमाल किया जाए तो, forests में धधकी आग पर तो हमेशा के लिए काबू पाया ही जा सकेगा, साथ ही युवाओं को रोजगार भी दिया जा सकता है. यही नहीं राज्य की इकोनॉमी को बढ़ाने में इसका बड़ा योगदान हो सकता है, बस जरूरत है तो मजबूत इच्छा शक्ति की।